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अलिफ लैला की प्रेम कहानी-32

कुछ समय पश्चात स्त्री ने कहा मैं घोड़े पर थक गई हूँ, पैदल चलना चाहती हूँ। राजकुमार ने उसे उतार दिया और उसके साथ पैदल चलने लगा। लेकिन उसे यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक परकोटे के पास पहुँच कर उसने पुकार कर कहा, 'बच्चों प्रसन्न हो जाओ। मैं तुम्हारे लिए बड़ा मोटा ताजा आदमी शिकार के लिए लाई हूँ।' जवाब में आवाज आई, अम्मा कहाँ है वह आदमी। हमें जल्दी से दे। हम बहुत भूखे हैं। राजकुमार यह सुन कर बड़ा भयभीत हुआ। वह समझ गया कि यह स्त्री नरभक्षी वनवासियों की जाति की है और मुझे मार कर खा जाने के लिए यहाँ धोखे से लाई है। वह घोड़े पर बैठ कर मुड़ने लगा। स्त्री ने देखा कि शिकार हाथ से निकला जाता है तो पलट कर कहने लगी, 'तुम परेशान क्यों हो, यह तो तुम्हारे साथ मजाक हो रहा था। राजकुमार ने कहा, 'खैर, तुम अपने घर आ गई हो और अब मैं जा रहा हूँ।' स्त्री बोली तुम कौन हो, कहाँ जाओगे। राजकुमार ने अपना हाल बताया कि शिकार खेलने में राह भूल गया हूँ। स्त्री ने कहा, 'फिर मेरे साथ क्यों नहीं आते? थोड़ी देर आराम करो।'

 

राजकुमार की समझ में नहीं आया कि स्त्री पर विश्वास करे या न करे। उसने अंततः दोनों हाथ उठाकर कहा, 'हे भगवान, यदि तू सर्वशक्तिमान है तो मुझे इस विपत्ति से बचा और मुझे मेरा मार्ग दिखा।' उसके यह कहते ही नरभक्षिणी स्त्री एक घने जंगल में गायब हो गई और कुछ देर में राजकुमार को अपना मार्ग भी मिल गया। अपने महल में पहुँच कर उसने अपने पिता से अपना संपूर्ण वृत्तांत कहा कि किस प्रकार वह अमात्य से बिछुड़ गया और नरभक्षिणी के पंजे में फँसते-फँसते बचा। राजा इस बात से इतना क्रुद्ध हुआ कि उसे अमात्य का वध करवा डाला।

 

शहरजाद इतनी कहानी कह कर फिर आगे बोली कि बादशाह सलामत, मंत्री गरीक बादशाह को यह किस्सा सुनाकर कहने लगा, 'मैंने विश्वस्त सूत्रों से मालूम किया है कि हकीम दूबाँ आपके किसी वैरी का जासूस है और उसने इसे यहाँ पर इसलिए भेजा है कि आपको धीरे-धीरे मार दे। यह ठीक ही है कि आप का रोग अभी दूर हो गया है किंतु औषधियों का बाद में ऐसा प्रभाव होगा कि आप को अत्यंत कष्ट होगा और संभव है कि जान पर भी बन आए।

 

मंत्री ने बादशाह को इतना बहकाया कि वह हकीम पर संदेह करने लगा। वह बोला, 'शायद तुम ठीक ही कहते हो। हो सकता है कि यह मेरी हत्या के उद्देश्य से आया हो और किसी समय मुझे कोई ऐसी औषधि सुँघाए जिससे मेरी जान जाती रहे। मुझे वास्तव में अपने लिए खतरा मालूम होता है।' मंत्री ने सोचा कि अपने षड्यंत्र को शीघ्र ही पूरा करना चाहिए, ऐसा न हो कि बादशाह का विचार बाद में पलट जाय। वह बोला, 'महाराज, फिर देर किस बात की है। उसे अभी बुलवा कर क्यों नहीं मरवा देते?' बादशाह ने कहा, 'अच्छा, मैं ऐसा ही करता हूँ।'

 

बादशाह ने एक सरदार को भेजा कि इसी समय दूबाँ को यहाँ ले आओ। दूत उसे थोड़ी ही देर में ले आया। दूबाँ के आने पर बादशाह ने पूछा, 'तुम्हें मालूम है मैंने तुम्हें इस समय क्यों बुलाया है' उसने 

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